बंगाली समाज में नवरात्रि के नौ दिन पूजा-पाठ के बाद दशमी के दिन सिंदूर खेलने
की परंपरा है,
इसे सिंदूर खेला
के नाम से जाना जाता है। इस दिन शादीशुदा महिलाएं एक-दूसरे के साथ सिंदूर की होली
खेलती हैं। ऐसी मान्यता है कि नवरात्रि में मां दुर्गा 10 दिन के लिए अपने मायके आती हैं। इसलिए
जगह-जगह उनके पंडाल सजते हैं। इन नौ दिनों में मां दुर्गा की पूजा और अराधना की
जाती है और दशमी पर सिंदूर की होली खेलकर मां दुर्गा को विदा किया जाता है।
की परंपरा है,
इसे सिंदूर खेला
के नाम से जाना जाता है। इस दिन शादीशुदा महिलाएं एक-दूसरे के साथ सिंदूर की होली
खेलती हैं। ऐसी मान्यता है कि नवरात्रि में मां दुर्गा 10 दिन के लिए अपने मायके आती हैं। इसलिए
जगह-जगह उनके पंडाल सजते हैं। इन नौ दिनों में मां दुर्गा की पूजा और अराधना की
जाती है और दशमी पर सिंदूर की होली खेलकर मां दुर्गा को विदा किया जाता है।
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नवरात्रि पर जिस तरह लड़की के अपने मायके आने
पर उसकी सेवा की जाती है,
उसी तरह मां
दुर्गा की भी खूब सेवा की जाती है। दशमी के दिन मां दुर्गा के वापस ससुराल लौटने
का वक्त हो जाता है तो उन्हें खूब सजाकर और सिंदूर लगा कर विदा किया जाता है। आपस
में सिंदूर की होली खेलने से पहले पान के पत्ते से मां दुर्गा के गालों को स्पर्श
किया जाता है। फिर उनकी मांग और माथे पर सिंदूर लगाया जाता है। इसके बाद मां को
मिठाई खिलाकर भोग लगाया जाता है। फिर सभी महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर लंबे
सुहाग की कामना करती हैं।
नवरात्रि पर जिस तरह लड़की के अपने मायके आने
पर उसकी सेवा की जाती है,
उसी तरह मां
दुर्गा की भी खूब सेवा की जाती है। दशमी के दिन मां दुर्गा के वापस ससुराल लौटने
का वक्त हो जाता है तो उन्हें खूब सजाकर और सिंदूर लगा कर विदा किया जाता है। आपस
में सिंदूर की होली खेलने से पहले पान के पत्ते से मां दुर्गा के गालों को स्पर्श
किया जाता है। फिर उनकी मांग और माथे पर सिंदूर लगाया जाता है। इसके बाद मां को
मिठाई खिलाकर भोग लगाया जाता है। फिर सभी महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर लंबे
सुहाग की कामना करती हैं।
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